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An individual with aspirations to achieve the pinnacle. I love to work for an outcome which rewards me my peers and my society. My favoirite lines "They alone live who live for others rest are dead than alive" I believe... God has a plan for my life..and thats all i need to know. I feel... If nothin is permanent then why crave for or avert things... I wonder... If MRP is "maximum" retail price.. then why dont i bargain... I feel... Love is not understood to be a crush..until it hurts. I feel... Worrying works...90% of the things i worry about DO NOT work.. I don't know why... People get mad in love...and get heart attacks due to tension... if Love is felt in the heart and tension in the brain..!!! I feel.. People who are organised..are too lazy to look for things!! I Think....... ...Therefore I am!!!

Friday, July 24, 2020

राजनीति और चुनाव

राजनीति और चुनाव ।

एक लोक तांत्रिक प्रक्रिया जिसे हमने civics की क्लास में पढ़ाया और सिखाया गया । आप और हम भारत के नागरिक हर ५ वर्ष में एक चुनाव करते हैं उनका जिन्हें राज की नीति आनी चाहिए । नीति - जो नैतिकता का मूल हैं । कम से कम civics अर्थात् नागरिक विज्ञान में यही सिखाया गया हैं ।

उमर के ४ दशक लगभग देख चुका हूँ । कई चुनाव देख चुका हूँ । बचपन में घर राजनीतिज्ञों का जमावड़ा था । कई विधायक , मंत्री , मुख्यमंत्री को मैंने नज़दीक से देखा . परखा कह नहीं सकता क्यूँकि परखने की समझ और ज़हमत दोनो में वो तल्ख़ी नहीं थी । नागरिक विज्ञान में पढ़ाए गए पाठ sin थीटा एर cos थीटा के जैसे विषय की परिभाषा में आ गए जिसको मैंने उतना इस्तेमाल नहीं किया । क्यूँकि मैं सिर्फ़ एक वोटर था । मेरी पढ़ाई मेरी नौकरी और तरक़्क़ी माध्यम था/हैं ।
विगत ४ माह में बहुत कुछ में पढ़ पाया , आज सोच रहा था , मेरे शहर मेरे मूल निवास स्थान  बारे  में ।  लगा नागरिक विज्ञान मे जो पढ़ाया  गया , राज और नीति के बारे  में जो  जानता हूँ उसका इस्तेमाल मैंने इस जीवन काल  में विरले हि देखा । राज नीति से नीति शब्द  पलायन हो  गया कई वर्ष पहले जैसे मेरा  पलायन हुआ ।मुझे रोज़गार की इच्छा थी , ज्ञान माफ़ कीजिए डिग्री कि ललक थी ।

बस ऐसे ही मेरे जैसे कई हज़ार और लाख लोग अपने शहर से पलायन कर गए । कॉलेज नहीं था और जो था वो उम्मीद पर खरा नहीं उतरता था । नौकरी सिर्फ़ सरकारी मिलती थी अपने शहर में वो भी ज़रूरी नहीं ।
मेरे साथ एक और पलायन हुआ राज से नीति का । विगत ३ दशकों में राजनीति बाहुबल का क्षेत्र बन गया । जैसे जैसे तल्ख़ और ज़हमत बढ़ी मैंने देश से राजनीति का अंत देखा और सिर्फ़ राज करने के लिए किसी भी हद तक जाने का जुनून देखा । लोग चुनाव अब भी करते थे किंतु राजनीतिज्ञ को नहीं  अनैतिक नासमझ तुग़लक़ और पुष्यक़िला को ।

चुनाव की परिभाषा जाती वर्ण और धर्म में सिमट गयी । आप क्षेत्र का विकास करो या ना करो कोई नहीं पूछता हैं । कोई आप से ये नहीं पूछेगा ५ वर्षों में आप शहर को कहाँ देखते हैं । विकास और विकास पुरुष चुनावी जुमले और हिंदी शब्दावली के शब्द बन गए ।
आज जब फिर से बिहार में चुनाव आ रहे हैं । आपने और मैंने दुर्गति की हद देख ली एक सोच मुझे सिरहन देती हैं क्या आज से ३०-३५ वर्ष बाद मेरा पुत्र भी ऐसा ही कुछ सोच रहा होगा अपने शहर गया में बारे में जहां
१) प्रेम सिर्फ़ जाती से हैं और विकास हम धर्म का देखना चाहते हैं ।
२) क्या धर्म का चुनाव से लेना देना हैं ।
३) मेरी अगली पीढ़ी किसे वोट देगी जो नीति और मेरे जैसे लोगों को घर वापसी कराए ।
४) क्या एक बीमार आदमी को देख कर मेरी आने वाली पीढ़ी भी अपने माँ बाप चाचा ताऊ को दिल्ली मुंबई ले कर जाएगी ।
५) क्या एक ढंग का SRCC LSR या स्कूल ओफ़ economics हमारे पास भी होगा ।
६) क्या नीति और नैतिकता का चुनाव हम कर पाएँगे या वही राजपूत भूमिहार यादव हरिजन कहार ब्रह्मान अंसारी सैयद का खेल खेलेंगे ।

कब तक वोट एक बैंक होगा और नेता ही उसका रस पाएँगे । मैं समझ ही नहीं पास रहा की मेरे निवास स्थान पर आज तक क्या सोच कर वोट बट रहा हैं या बिक रहा हैं । क्या हम चुनाव कर पाएँगे। क्या राज नीति की शाब्दिक परिभाषा चुनाव में दिख पाएगा ।
मुझे घृणा हो रही हैं  अपने आप पर क्यूँकि मैं रंगभेद को तो ख़त्म होते देख पाया जाती वाद को नहीं ।
दुःख हैं कि पलायन हो रहा अभी भी ... सिर्फ़ मज़दूरी और पढ़ाई करने वालों का नहीं ... नीति का भी । अगर धर्म की बात करनी हैं तो राज धर्म की करो । वोट और नोट की ललक के लिए मेरे आराध्य के नाम पर मुझे मत भड़काओ ।
अगर तुष्टिकरण करना हैं तो मूलभूत सुविधाओं का करो , फुट डाल कर राज करने की नीति २०० वर्ष पुरानी हो गयी और मेरे गया के निवासियों को समझना होगा ।

क्या हम नीति को वापस ला पाएँगे । राज की नीति करने वाले नैतिक लोगों को वैसे ही चुनो ज़ैसे को आप एक कर्मचारी को चुनते हो । ज्ञान ज़रूरत हैं नीति को अवतरित करने के लिए । नेक लोगों को चुने । ना कोई बेटा ना कोई नकारा । चुनिए उसको जो काम करे न्यारा ।।

भारत माता की जय । वन्दे मातरम ।
 राहुल चौरसिया

3 comments:

Prashant Kumar Singh said...

Very well said

Milind said...
This comment has been removed by the author.
jahmealazabala said...

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