यादृच्छिक कविता (Random Poem) ✌
चुनाव में रवि किशन भी शुक्ला हो जाते हैं ,
निरहुआ चीख चीख कर जात बतलाते हैं ..
यह उत्तर प्रदेश का चुनाव हैं भैया
जात पात ही सौग़ात दिलाते हैं ॥
सड़क , अस्पताल तो सब बनाते हैं
नाम और रुतबा तो जात वाले ही दिलाते हैं ॥
अखिलेश चाहे बियाह किसी भी जात में करे
चुनावी मंच पर बस यादव यादव चिल्लाते हैं ॥
हम भी अजीब रंगमंच की कठपुतली हैं ..
वोटर हैं हुज़ूर धर्म जात और पंथ मेरे अभिमान की सुतली हैं ॥
५ साल तक मंत्री पद की मलाई
फिर जैसे ही बेटे की टिकट ना मिली
दे दो जात पात की दुहाई
और ले लो कहीं और के लिए विदाई ।
मजा तो इस बात का आता हैं
नेता सामने से, आपको अपर या लोअर बोल कर जाता हैं
पता नहीं किस पैमाने से किसी को अगडा और किसी को पिछड़ा बुलाता हैं
७४ साल बाद भी आपको सिर्फ़ जाती याद दिलाता हैं
और आपके मुख से अपने आप को मसीहा कहलाता हैं ॥
ऐ मेरे उल्टा प्रदेश के सीधे लोग
अब तो जातिवाद की दंश मत भोग ।
अब तो आँख खोल कर देखो
जातिवाद के प्रचारक को उखाड़कर फेंको
नेता वही जो तरक़्क़ी कराए
ना विकास दुबे ना विकास यादव
हमें तो बस चाहिए विकास और वैभव ।
इस बार अपने लिए एक क़सम खाओ
चुनाव वाले दिन अपनी जात भूल जाओ
चूनने का एक नया पैमाना बनाओ
मतदान के कर्तव्य को निभाओ
और उस हीरे को चून कर लाओ
जो चुनावी काल का अभिनेता नहीं
आपके दिल का नेता हो ।
बाक़ी हम सबको मालूम हैं
जाती यू॰पी॰ का सबसे बड़ा क़ानून हैं ।
सामाजिक न्याय एक छलावा हैं
एक चुनावी दिखावा हैं ।
हाथी , हाथ , साइकल या कमल
लाओ वही जो सुधारे आपका आने वाला पल ॥
सोच कर समझ कर
ऐ मेरे यू॰पी॰ वाले दोस्त तू वोट कर ॥
शुभ रात्रि (C) G Rahul Manohar
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